|| हरि ૐ तत्सत ||

सिद्धयोग मार्ग

सिद्धयोग में कुंडलिनी जागृति के लिए सिद्ध गुरु द्वारा मिलनेवाले शक्तिपात की कृपा का बहुत महत्व है।

सिद्धयोग में गुरुके शक्तिपात की कृपा द्वारा कुंडलिनी शक्ति जागृत की जाती है। जिससे यह जागृत कुंडलिनी व्यक्ति को समाधि, ध्यान और धारणा के लिए सहायक होती है। इसका मतलब यह है कि कुंडलिनी जागृत हुए व्यक्ति को ध्यान और समाधि नैचरली और ऑटोमेटिक घटित होता है। और यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, इत्यादि प्रयत्न पूर्वके करने की जरूरत नहीं है। जो यम, नियम की जरूरत हो, वह अपनेआप होने लगते है। जो आसन, प्राणायाम, धारणा की जरूरत हो, वह अपनेआप नैचरली होने लगता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को शरीरको जो योगिक क्रिया की जरूरत हो, वह क्रियाओं, स्वयंभू आसन, स्वयंभू प्राणायाम, स्वयंभू मुद्राएं अपनेआप होने लगती है। और व्यक्ति के सातों शरीर का शुद्धिकरण होने लगता है।

|| हरि ૐ तत्सत ||